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नीलकंठी कला (गोदड़ देव मंदिर) शिव मंदिर चांद छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश | Nilkanthi Mahadev Mandir (Godad Dev), Chand Chhindwara, Madhya Pradesh

 

Nilkanthi Mahadev Mandir (Godad Dev), Chand Chhindwara
Nilkanthi Mahadev Mandir(Godad Dev), Chand Chhindwara    

Nilkanthi Chhindwara नीलकंठी छिंदवाड़ा :-

 (According to Centeral Provinces District Gazetteers Issue Date: 1907)

A village in the Chhindwara tahsil, 14 miles (22.5 Km) to the south-east of Chhindwara, with a population of about 200 persons. On the bank of the Tiphana stream near the village are the ruins of some temples. The entrance gate of the main temple is still standing, and was formerly en closed within a retaining wall about 264 feet long by 132 wide. It is of the mediaeval Brahmanic style without cement, the stones being secured by iron clamps. There are also the remains of a small fort called Parkota and of a Bhonwara or terrace. On a pillar which appears formerly to have belonged to the temple is an inscription, much defaced by the sharpening of agricultural implements against the stone. It mentions king Krishna III of the Rashtrakuta line, who lived in the 10th century. Another fragmentary inscription has recently been discovered, giving the name of the same king and stating him to belong to the Lunar race. As the name Nilkanthi is an appellation of Mahadeo, the temples were probably Sivite. The local tradition is that the temples were built by a king called Nilkanth whose body lies before them in the shape of a block of stone, while his head is 30 miles (48.2 km) off in a village called Chadni Kubdi. At the latter place an enemy who had seduced his wife turned him into a deer and cut off his head, upon which his trunk flew back to Nilkanthi and lay before the temple of Mahadeo which he had built. The design of the main gate of the ruined temple is in Brahmanic Style.

नीलकंठी छिंदवाड़ा तहसील का एक गाँव है जो छिंदवाड़ा के दक्षिण-पूर्व में 14 मील (22.5 किलोमीटर) की दूरी पर, लगभग 200 व्यक्तियों की आबादी के साथ स्थित है। गांव के पास तिफाना नदी के तट पर कुछ मंदिरों के खंडहर हैं।  मुख्य मंदिर का प्रवेश द्वार अभी भी खड़ा है, और पूर्व में लगभग 264 फीट लंबी 132 चौड़ी एक रिटेनिंग दीवार के भीतर बंद था। मंदिर के निर्माण में सीमेंट का उपयोग नही किया गया है। मंदिर मध्यकालीन ब्राह्मनिक शैली का है, पत्थरों को लोहे के क्लैंप द्वारा सुरक्षित किया जाता है। परकोटा नामक एक छोटे से किले और एक भोंवाड़ा व छत के अवशेष भी हैं। एक स्तंभ पर, जो पहले मंदिर से संबंधित प्रतीत होता है, एक शिलालेख है, स्‍थानीय नागरिको द्वारा पत्‍थर पर कृषि उपकरणों को तेज धारदार बनाने के लिए उपयोग किया गया जिससे वह विकृत हो गया। इसमें राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख है, जो 10वीं शताब्दी में रहते थे। एक और खंडित शिलालेख हाल ही में खोजा गया है, जिसमें उसी राजा का नाम दिया गया है और उसे चंद्र जाति से संबंधित बताया गया है। जैसा कि नीलकंठी नाम महादेव शिव का नाम है। यहां संभवत: बहुत से शिव मंदिर थें। स्थानीय परंपरा यह है कि मंदिरों का निर्माण नीलकंठ नामक एक राजा द्वारा किया गया था, जिनका शरीर उनके सामने पत्थर के एक खंड के आकार में है, जबकि उसका सिर चादनी कुबडी नामक गांव में 30 मील (48.2 किमी) दूर है। बाद के स्थान पर एक शत्रु ने, जिसने उसकी पत्नी को बहकाया था, उसे हिरण में बदल दिया और उसका सिर काट दिया, जिस पर उसकी सूंड उड़कर वापस नीलकंठी चली गई और महादेव के मंदिर के सामने लेट गई, जिसे उसने बनाया था। खंडहर हो चुके मंदिर के मुख्य द्वार का डिजाइन ब्राह्मनिक शैली Brahmanic Style में है।


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नीलकंठी शिव मंदिर (गोदड़ देव) छिंदवाड़ा मंदिर प्रांगण स्थित लेख :- 

ऐतिहासिक विवरण के अनुसार विदर्भ देवगिरी (वर्तमान दौलत वाद) के राजाओं ने इस क्षेत्र में राज्‍य किया है। जो त्रिपुरी कलचुरी राजाओं के समकालीन थे। यादव राजा महादेव (मृत्‍यु सन् 1241 ई.) एवं रामचन्‍द्र के मंत्री हिमाद्री ने विदर्भ राज्‍य में कई स्‍थनों पर अनेक मंदिरों का निर्माण कराया जो हिमाद पंथी (हमाड़पंथी) शैली के नाम से जाना जाता है। कलचुरियों के समकालीन एवं राज्‍य सीमा से लगे होने के कारण इस मंदिर का वास्‍तुशिल्‍प लगभग कलचुरि स्‍थापत्‍य से मिलता है। इसका निर्माण लगभग 13 वी सदि ई. रहा है। 

               भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भूमित्र शैली का है। भूविन्‍यास में गर्भ गृह, अंतराल एवं मंडप है। मंदिर का जंघा तक का पृष्‍ठ भाग अपने मूल स्‍वरूप में है । गर्भ गृह भूतलिय है, जिसमें शिवलिंग स्‍थापित है। जिस तक जाने के लिए सौपान है। अंतराल की रथिकाओं में गोरी वं भैरव की प्रतिमायें स्‍थापित है। द्वार शाखा में सप्‍त मात्राये उत्‍कीर्ण है। 

              गर्भ ग्रह एवं मंडप के ध्‍वस्‍त होने पर स्‍थानिय लोगों के द्वारा जीर्णोदार कराया गया है। मंदिर परिसर में मंडप के स्‍तंभ दृष्‍टव्‍य है। एक स्‍तम्‍भ पर देवनागरी में संस्‍कृत भाषा के अस्‍पष्‍ट लेख है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर दो और मंदिरों के भग्‍नावशेष है। 

संचालनालय 
पुरातत्‍व अभिलेखाकार एवं संग्रहालय मध्‍यप्रदेश 

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नीलकंठी कला छिंदवाड़ा (गोदड़देव) में ऊपर चित्र में दाई तरफ की मूर्ति को ग्रामीणों द्वारा इसे सास-बहु का मंदिर कहते है एवं कुछ लोग भगवान हनुमानजी की मूर्ति हो सकती है यह समक्षते है।  
                उक्‍त मूर्ति को ध्‍यान से देखे यह मूर्ति भगवान विष्‍णु जी के  वराह अवतार भगवान की मूर्ति है। भगवान वराह की पूर्ण मूर्ति का चित्र ऊपर बाई तर बना हुआ है। जिससे आप खुद बहुत आसानी से देख कर समझ सकते है। मध्‍यप्रदेश में उदयगिरी की गुफा नंबर 05 में वराह अवतार भगवान की मूर्ति है। मूर्ति में वराह भगवान का बांया पांव नाग राजा के सिर पर दिखलाया गया है। गले में बैजंती की माला है। यहां वराह भगवान को मानव और पशु संयुक्त रूप में दिखाया गया है।

नीलकंठी कला शिव मंदिर गूगल लोकेशन लिंक 
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